विक्रम - बैताल की आधुनिक कथा (भाग एक)
पेड़ पर लटकते हुए बैताल को विक्रम ने अपने कंधे पर जनतंत्र की तरह लाद लिया और मँहगाई की तेज़ गति से चल पड़े।
दस कोस की यात्रा के बाद अचानक बैताल ने कहा - राजन! हमारे शास्त्रों में कहा गया कि "काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्" अर्थात विद्वानों का समय काव्यशास्त्र आदि की चर्चा में ही व्यतीत होना चाहिए। निद्रा और विवाद में समय बिताने वाले मूर्ख होते हैं। फिर आप चुप क्यों हैं? किसी विषय पर सार्थक चर्चा चलाइए।
विक्रम ने खिसिया कर कहा - देखो बैताल! चुपचाप एलपीजी सिलेंडर की तरह कंधे पर पड़े रहो। एक तो ऐसे ही मूड आफ है उस पर तुम और परेशान मत करो।
बैताल ने अट्टहास किया और कहा - राजन किस बात से व्यथित हो? बताओ संवाद से ही हल निकलता है।
विक्रम ने कहा - मैं आर्यावर्त के लोगों की मनोदशा नहीं समझ पा रहा हूँ। देश के एक कोने में एक सामान्य व्यक्ति अपने कंधे पर पत्नी की लाश लिए सत्तर किलोमीटर की यात्रा करने लगता है। मार्ग में तीन हज़ार गाड़ियाँ गुजरी होंगी लेकिन किसी ने उसके साथ चलना उचित नहीं समझा। वहीं देश के दूसरे कोने में शहाबुद्दीन के जमानत से मुक्त होने पर तेरह सौ गाड़ियों का काफिला चल पड़ता है। क्या है यह?
बैताल ने मुँह से सुरती थूकते हुए कहा - राजन! बेवकूफ मत बनो। जनता की बात मत करो। जनतंत्र की रीति समझो।जनतंत्र में आम और जनता दोनों का एक ही अंजाम होता है - दोनों चूस कर फेंक दिए जाते हैं। इसीलिये जब भी जनता और तंत्र की लड़ाई हो तो तुम भी तंत्र की ओर हो जाना। आम और पेड़ की लड़ाई में हमेशा पेड़ की ओर रहना। याद रखना जनता और आम चूस कर फेंक दिए जाते हैं इसीलिए आर्यावर्त के लोग खुशी खुशी स्वयं को "आम-जनता" कहते हैं। जब तक इस आम जनता का वास्तविक अर्थ लोग नहीं समझेंगे तब तक यही स्थिति रहेगी। खैर कोई दूसरी बात करो राजन।
विक्रम ने कहा - बैताल! हम अपनी कोई भी जनकल्याणकारी योजना लागू नहीं कर पाते हैं जैसे आधार कार्ड को ही देख लो। सुश्री कैटरीना कैफ से लेकर श्री अमिताभ बच्चन जी के द्वारा व्यापक प्रचार प्रसार कराया गया फिर भी पचपन प्रतिशत जनता का आधार कार्ड नहीं बन पाया। ऐसा क्यों है?
बैताल ने हँसते हुए कहा - राजन शर्त याद है न। मेरे समाधान बताने पर अगर तुम्हारे मुख से "सही कहा" निकल गया तो मैं फिर डाल पर जाकर लटक जाऊंगा। बैताल ने आगे कहा - जानते हो! तुम जनता की मनोदशा को समझ नहीं पा रहे। याद करो हर फिल्म के पहले ट्रेलर दिखाया जाता है कि - 'सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है'। शराब की बोतलों पर साफ़ साफ़ लिखा रहता है कि - शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। फिर भी लोग उसे खरीदते हैं।
राजन! तुम्हें भी कुटिल व्यापार नीति अपनानी चाहिए।शुद्ध घी के डिब्बे पर जब तक लिखोगे नहीं कि घी खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तब तक घी बिकेगा नहीं। अमूल दूध को बेचना है तो उस डिब्बे पर लिखा होता है - "माँ का दूध ही सर्वोत्तम है"।यही व्यापार की नीति है। तुम वास्तुदोषों का निवारण करके स्वर्ग जैसे उपवन में शहद की दुकान नहीं चला सकते लेकिन मैं श्मशान भूमि में बियर की दुकान खोल दूं तो खूब चलेगी।
व्यथित हृदय से विक्रम ने कहा - अच्छा! तब हमें आधार कार्ड बनवाने के लिए क्या करना चाहिए?
बैताल ने कहा - देखो राजन हिंदुस्तान का हर आदमी ईमानदार है सिर्फ उसके पड़ोसी को छोड़कर। तुम बस यह प्रचारित करा दो कि अगर आप अपने पड़ोसी से बदला लेना चाहते हैं तो उसका आधार कार्ड बनवा दीजिए।
जैसे अगर आप जानते हैं कि आपका पड़ोसी करोड़ों रुपये की अवैध कमाई करता है और उसके कई बैंकों में अकाउंट हैं।अगर उसका आधार कार्ड बन जाए तो आगे चलकर आधार कार्ड से उसके सारे खाते पकड़ में आ जाएंगे और उसे या तो आय का श्रोत बताना होगा या इन्कम टैक्स देना होगा।
इसी तरह मान लीजिए कि आपका पडोसी बैंक में डकैती करता है या एटीएम से धोखाधड़ी करता है तो उसका आधार कार्ड बनवा दीजिए। आप जानते हैं कि आधार कार्ड में आँखों के रेटिना के प्रिंट लिए जाते हैं और आगे चलकर बैंक के एचडी सीसीटीवी फुटेज को जूम कर उसकी आँखों के रेटिना को आधार कार्ड से मैच कराया जाएगा तो पडोसी के घर पहुंचने से पहले ही पुलिस उसके पहुंच जाएगी। क्योंकि बंदा कुछ भी कर ले आँखे तो खुली ही रहेगी न। अगर हेल्मेट चश्मा या फोटो फ्रेमिक ग्लास भी रहा तो हाई क्वालिटी के कैमरे चश्मे के बाद भी रेटिना के फुटेज निकाल लेंगे।
आधार कार्ड एक बहुउद्देशीय योजना है अगर इसे ढंग से लागू किया जाए तो सिलेंडर की सब्सिडी से लेकर खाद्यान्न घोटाला और सार्वजनिक जगहों पर अपराध करने वाले अपराधियों तक पुलिस की पहुंच आसान हो जाएगी।
रूस में वैज्ञानिकों की एक टीम इस तरह का सेटेलाइट बना रही है जो आने वाले दिनों में आसमान में से आँखों की रेटिना को हमेशा लोकेट करता रहेगा ठीक वैसे ही जैसे मोबाइल में नेटवर्क। मतलब साफ है कि अगर आपके पड़ोसी की जेब में आधार कार्ड है तो वह हमेशा नज़र में है। इसी तरह मान लीजिए अगर आपके पड़ोसी ने आप पर हमला कर दिया और आपका आधार कार्ड क्षतिग्रस्त हो गया तो निकटतम केंद्र में सूचना पहुंच जाएगी। और आपका पड़ोसी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तो अगर आप अपने पड़ोसी को ढंग सिखाना चाहते हैं तो अपनी जेब से भी बीस रुपया लगाकर उसका आधार कार्ड बनवा दीजिए। उसके हाथ पैर पर भी गिरना हो गिरिए लेकिन उसका आधार कार्ड बनवा कर ही चैन लीजिए...
अचानक विक्रम के मुँह से निकला - सही कहा बैताल भाई। आर्यावर्त में यही नीति सफल होगी।
इधर बैताल अट्टहास करते हुए उड़ गया और फिर उसी डाल पर जाकर लटक गया।
असित कुमार मिश्र
बलिया