Tuesday, July 26, 2022

गीता पर हाथ रख कर.... (कथा - संग्रह)
                                                                लेखक :-  मानवेंद्र मिश्र






                   समर्पण :- 'न्याय' के लिए उठी हर आँखों के इन्तज़ार को

Friday, July 8, 2022

सुविचार का कुविचार

सुविचार का कुविचार 

बलिया से पचास - पचास कोस दूर जब भी कोई बारात दूसरे जिलों या राज्यों में जाती है तो अंगना में जूता-चुराई का नेग हाथों में धरते हुए साली जी सबका परिचय कराते हुए कहतीं हैं - ए जीजा! हई पिंकी है, हई सुभावती, हई रिंकिया, हई मुस्कान आ हई शोभा.... ।सबको चीन्ह लीजिए ठीक से.... इस बार मेरी कोई भी सखी इंटर में फेल हुई तो दिदिया किरिया कह रहे हैं कभी बलिया में गोड़ नहीं धरेंगे।
जीजाजी के बगल में बाडीगार्ड की तरह खड़े 26-26-26 साइज़ के देहधारी युवक ने मुँह में भरे गुटखे को थूकते हुए चवनियाँ मुस्कान के साथ कहा -हाईस्कूल पास का फोटोकॉपी और एक - एक फोटो दे देना सबका। सब लोग पास हो जाओगी आ आपको तो 'जिला टॅप' कराएँगे।
साली जी फेल होने के दुख को ओढ़नी में लपेटती हुई बोलीं - हम तो इसी साल पास हो गए होते लेकिन हमारे स्कूल का हेड मास्टर एतना कमीना था कि समीज़ में रखा हुआ चिट तक नहीं निकालने दिया था.... बलिया में सुने हैं कि ऐसा नहीं होता है!
बाडीगार्ड जी ने होठों से कुत्सित मुस्कान और जेब से एक मुहर निकाल कर साली जी के हाथ पर धरते हुए कहा - आप आइए तो बलिया में! आप ही को 'प्रेंसपल' बना देंगे....।
भक्क! - साली जी ने लजा कर कहा और सीढ़ियों से दौड़कर छत पर वाले कमरे में चली गईं। 
               इधर दुल्हन की बिदाई के समय गाँव के सीवान से निकलते हुए बारात ने जयकारा लगाया था - बोलो-बोलो भिरगू बाबा की.... जय! 
उधर छत पर पारबती उर्फ़ साली जी ने डाॅट पेन की रिफिल निकाली थी, उसकी स्याही को मुहर के उल्टे अक्षरों पर लगाया था और दीवार के कैलेंडर पर ठोंक दिया। कैलेंडर पर अगले ही पल कुछ अक्षर उभर आए थे - "प्रधानाचार्य फूलकुमारी देबी इंटर कॉलेज बलिया"।

                  पिछले दिनों यही बलिया जिला अपने ऐसे ही संपन्न होने वाले हाईस्कूल - इंटरमीडिएट की परीक्षाओं के कारण चर्चा में था।सब जानते हैं कि परीक्षा-कक्ष में बोलकर हल कराने से लेकर पेपर आउट कराने और कापियाँ घर लिखवाने में तमाम जीजाओं-सालियों और ससुर - दामादों का अथक प्रयास तो रहता ही है इसमें सरकारों और अधिकारियों का भी कम योगदान नहीं है।
हर साल की तरह इस साल भी हाईस्कूल - इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ चल रही थीं। पेपर और उसके हल समयानुसार टेलीग्राम और व्हाट्स - ऐप पर आ ही रहे थे कि अचानक शहर में शोर उठा - "संस्कृत वाले शुक्ला गुरुजी व्हाट्स - ऐप पर पेपर भेजने में एसटीएफ के द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए हैं" ।
जहाँ तक याद आता है मैं भोजन कर रहा था। मारे दु:ख के आगे खाया न गया। हालांकि जानता हूँ कि विद्वान आदमी के पतित होने की संभावना ज्यादा होती है।फिर भी किसी अध्यापक की मृत्यु से ज्यादा दु:खदाई उसका जेल जाना होता है। वैसे तो गुरुजी से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं था बस एक बार किसी बिचौलिए अध्यापक ने परिचय के क्रम में बता दिया कि ये असित कुमार मिश्र हैं हिंदी वाले। हिंदी के अध्यापक की गरिमा इतनी ही होती है कि लोग 'अच्छा - अच्छा' कह कर हाथ-वाथ मिला लें, मोबाइल नंबर या पता वगैरह लेना - देना प्राय: गणित और विज्ञान के अध्यापकों के साथ होता है। 
लेकिन गुरुजी ने न सिर्फ़ हाथ मिलाया बल्कि अपना मोबाइल फोन निकाल कर मेरे हाथों में देते हुए कहा - "अपना नंबर इसमें 'सेभ' कर दीजिए। कभी जरूरत हुआ तो नंबरवा रहेगा तभिए न बात होगी"।
 उस दिन के बाद गुरुजी से सशरीर मुलाकात का सौभाग्य तो न मिल पाया लेकिन सुबह - शाम मेरे व्हाट्स - ऐप पर उनके द्वारा भेजे जाने वाले सुविचार रोज प्राप्त होने लगे।
गुरुजी से मेरा संबंध" सुविचार" का था। वो रोज़ न जाने कितने-कितने परिश्रम से किन - किन गहन-गिरि-कानन-कुञ्जों से सुविचार इकट्ठा करते और मेरे व्हाट्स - ऐप में डाल कर मुझे महान व्यक्ति बनाने की असफल कोशिश में निरंतर लगे हुए थे।
मैंने उसी दिन कुछ गरिष्ठ अध्यापकों से गुरुजी के संदर्भ में पूछा कि - न तो उनकी कोई साली - सरहज अब हाईस्कूल - इंटर में होगी न कोई समधन.... फिर उन्हें पेपर व्हाट्स - ऐप पर भेजने की क्या जरूरत पड़ी थी? 
फिर मुझे जैसा बताया गया उसके अनुसार गुरुजी हर सुबह की भांति स्नान - ध्यान से निवृत्त होकर सुविचार फारवर्ड करने में लगे थे। भूलवश उनके नंबर पर किसी ने हाईस्कूल अंग्रेज़ी का पेपर भेज दिया। उन्होंने सोचा होगा कि यह भी कोई सुविचार का पोस्टर ही होगा भाषा भले विदेशी है और लगे भेजने.... ।
भेजने का यह क्रम तब रुका जब एसटीएफ ने उनके हाथों में हथकड़ियाँ डाल दीं।
                      कई दिनों तक गुरुजी के निष्पाप होने पर भी उनका यूँ जेल चले जाना बहुत अखरता रहा।एक ही अध्यापक जाति, कर्म और धर्म का होने के कारण बहुत दिनों तक सोचता रहा कि - काश! मैंने वकालत की डिग्री ली होती तो आज गुरुजी को जेल से रिहा करा लाता या जज़ साहबान तक मेरी पहुँच ही होती तो उनके पैरों पर भले गिरता लेकिन गुरुजी को बा-इज्ज़त बरी करा लाता।शासन - सत्ता तक भी मेरी आवाज़ पहुँचती तो जरूर बताता कि गुरुजी का चरित्र निर्दोष और निष्पाप है उन्हें चेतावनी देते हुए छोड़ दिया जाए।
                        इधर जीवन मंदाक्रांता छंद की मंथर गति से चल रहा था कि कल रात अचानक व्हाट्स-ऐप पर गुरुजी के नंबर से हलचल हुई और एक "रात्रिकालीन सुविचार" मेरे व्हाट्स-ऐप की झोली में आ गिरा। 
मैंने तुरंत शुक्ला जी के एक साथी गुरुजन के यहाँ फोन किया और पूछा कि - गुरुजी जेल से छूट गए हैं क्या? 
उधर से यादव गुरुजी ने बताया है कि - "सरवा दोपहर में ही जमानत पर आया है और" रात्रिकालीन सुविचार" शुरू कर दिया। संबंध के कारण इसको ब्लाक भी नहीं कर सकता। इसको आजीवन कारावास हो जाता तो इसके रोज़-रोज़ के सुविचारों से जान बचती"।
मैं क्या कहता!बस सोच रहा हूँ कि काश! मैंने वकालत की डिग्री ली होती तो गुरुजी को पुनः जेल तक छोड़ आता या जज साहब तक मेरी पहुँच ही होती तो जरूर कहता कि - जज साहब! आपको राज्य-सभा की कसम पेपर आउट प्रकरण में भले छोड़ दीजिए लेकिन फालतू के सुविचार फारवर्ड करने के जुर्म में 'सर तन से जुदा' टाइप कोई सजा जरुर सुनाइए गुरुजिउवा को.... ।
लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि गुरुजी जमानत देने वाले जज साहब का मोबाइल नंबर जरुर लिए होंगे और इस "रात्रिकालीन सुविचार" की एक काॅपी उनके व्हाट्स-ऐप तक भी जरूर गई होगी.... 

असित कुमार मिश्र 
बलिया