Wednesday, January 22, 2020

पोस्ट

तकनीकी से थोड़ा दूर रहना....

आजकल गाँव गाँधी आश्रम के उजरके कंबल जैसी धुंध में दिन भर लिपटा रहता है। इस धुंध में कब सुबह हो जाती है और कब साँझ, किसी को कुछ पता ही नहीं चलता। उधर खेतों में गेहूँ के मनढीठ पौधे सुबह की शीत का भार अपने कपार पर लिए दिन भर काँपते रहते हैं इधर सर से लेकर पाँव तक कपड़ों के भार से दबे रहने पर भी शरीर काँपता रहता है।
पिछले दिनों की धुआंधार बारिश से तो गाँव बच गया लेकिन लगता है यह ठंड जान लेकर ही छोड़ेगी।
धूप की स्थिति यह है कि तीन - चार दिन पर सूरज अचानक धुंध के बीच किसी कोने से सरकारी कर्मचारी की तरह निकलता है और आसमान के रजिस्टर पर साइन बना कर ओझल हो जाता है। दिन भर ओसारे में जलते अलाव को घेर कर बैठा हुआ गाँव अपने आप में भी धीरे-धीरे सुलगता रहता है - सैकड़ों बातों की गर्मी में... हज़ारों वादों की गर्मी में और लाखों उम्मीदों की गर्मी में।
परभुनाथ चचा सामने बैठे पूरन सिंघ से पूछ बैठते हैं -अच्छा! दिन तो बीत गया होगा न?
पूरन सिंघ "अबकी बार चार सौ पार" नामक व्हाट्स-ऐप ग्रुप के एडमिन हैं। मैसेज़ के अक्षरों पर कत्थक करती उनकी उंगलियाँ जैसे ठहर सी जातीं हैं - का बोले हैं! "अच्छा दिन" बीत गया? कान खोलकर सुन लीजिए! दुई हजार पचास तक आपके अखिलेश बाबू नहीं आने वाले...।
मन मसोस कर रह गए परभुनाथ चचा। बड़ी उम्मीद से तीन साल पहले एक फेसबुक ग्रुप बनाया था - "युवा देश युवा अखिलेश"।
लेकिन दो साल बीतते - बीतते वह ग्रुप समाज से सिमट कर परिवार तक ही रह गया। अब वहाँ सिर्फ परभुनाथ चचा पोस्ट करते हैं और अपनी ही चारों आईडी से लाइक करके दिल को समझा लेते हैं कि एक न एक दिन देश में समाजवाद जरुर आएगा।
कपार पर हाथ रखकर बोले परभुनाथ चचा - मरदे! हम राजनीतिक बात नहीं किए! हम तो बस पूछ रहे थे कि दिन अभी केतना बचा है?
तभी ओसारे के भीतर का दरवाज़ा खोल कर चाची एक हाथ में संझवत का दिया और दूसरे हाथ से घंटी टुनटुनाते हुए निकलीं। मुँह से हमेशा की तरह श्लोक ही झर रहे थे - "अपने तो न कोई काम है न धाम। आ ऊपर से एगो आ गया है मुँहझौंसा मोबाइल! दिन-रात बस टिप - टिप, टिप-टिप... " ।
              चाची तुलसीचौरे पर दिया रखकर चलीं गईं। दिए की हिलती - डुलती लौ को देखते हुए रजेसवा ने कहा - परभुनाथ चचा! मटर नहीं बोवाया है का हो!
परभुनाथ चचा थोड़ा तन गए और बोले - उन्नीस सौ सत्तर के बाद कोई ऐसा साल नहीं बीता जिस साल कियार के खेत से तीन कुंतल मटर न निकला हो!
तभी अलाव के धुएँ से 'सेक्युलर हिंदुओं' की तरह आँखें बंद किए रजेसवा बोल पड़ा - का फायदा ऊ तीन कुंतल मटर होने से जब ओसारे में बैठे दु - चार आदमी को देखने तक को न मिले।
अपनी ही बातों में फंसे परभुनाथ चचा बेमन से उठे और अंगना में चाची के पास जाकर खड़े हो गए। लेकिन साफ़ साफ़ कहने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए बात को दूसरे तरह से कहा - सरसों का तेल घर में होगा कि नहीं?
चाची ने कहा - हाँ, है।
आ हरियर मरिचा भी होगा न?
चाची ने अबकी आँखें दिखा कर कहा - हूँ ऽऽ।
परभुनाथ चचा ने आखिरी चाल चलते हुए कहा - भूख जैसा लग रहा है दू अंजुरी मटर भून दीजिए न!
चाची ने उनके चाल की काट करते हुए पूछा - लगी है भूख? ई कांहे नहीं कह रहे हैं कि ओसारे में जमे डीह - देवता लोगों को खिलाना है!
परभुनाथ चचा ने नरमी से समझाया - देवनथवा की माँ! समाजवाद यही कहता है कि सबको खिला कर आप खाइए! अपना पेट तो जानवर भी भर लेता है...।
चाची ने दाँत पीसते हुए कहा - "ये अपना समाजवाद ओसारे में जाकर उन्हीं लोगों को समझाइए। पूरन सिंघ के छज्जे से कम से कम पचास गो लौकी तुराया होगा। कांहे नहीं एक लौकी लाकर दुआर पर पटक दिए! अवधेसवा की भैंस एतना दूध देती है आज तक जोरन भी नहीं निकला उसके तीनों दयादी से..." ।
परभुनाथ चचा ने हैरानी से चाची की ओर देखा और सोचा - आखिर कौ जीबी का मेमोरी है इसके दिमाग में कि पूरे गाँव की एक छोटी सी बात से लेकर किसके तरकारी में कितना नमक पड़ता है, सबका हिसाब रखे रहती है।
उधर ओसारे में अलाव पर दो - तीन लकड़ियाँ और रख दी गई थीं ताकि आग थोड़ी देर तक और रह सके।
                   मटर भूनने की महक भर आने की देर थी कि बगल से रामानंद चौधरी भी चले आए। सबने थोड़ा - थोड़ा सरक कर उनके लिए भी जगह बनाया। रामानंद को बैठे हुए थोड़ी देर हुई थी कि पूरन सिंघ बोल पड़े - कहीं कुछ जलने की महक आ रही है क्या?
रामानंद जी बड़े पर्यावरण संरक्षक के तौर पर सोशल मीडिया में उभरे हैं। फेसबुक पर बिना पौधे लगाने की पोस्ट किए नहाते - खाते नहीं हैं। उन्होंने फेसबुक ही खोला था। एक कमेंट को लाइक करते हुए उपदेशक की भांति कहा उन्होंने - तुम लोगों को अपने - अपने नेताओं से फ़ुरसत मिलेगी तब न जानोगे कि अमेजन के जंगल में आग लगी है और जंगल खतम होने की देर है साक्षात परलय होगा परलय...!
तभी रजेसवा ने झटके से उठ कर अलाव के कोने पर सुलगती उनकी चादर हटाते हुए कहा - मरदे! जंगल - वंगल नहीं आपके चादर का हई कोना जल रहा है।
रामानंद जी ने देखा अमेजन के जंगल के साथ-साथ उनके ऊनी चादर का एक कोना भी ठीक-ठाक जल चुका था और ओसारे के भीतर मटर की घुघनी खाते हुए अब एनआरसी पर बहस छिड़ चुकी थी.... ।
                    ठीक उसी समय ओसारे के बाहर दुआर पर भी एक गाँव था। जिसमें न फेसबुक था, न व्हाट्स-ऐप, न ट्विटर और न ही लाइक-कमेंट। वहाँ पाँच - छह छोटे - छोटे बच्चे थे और बच्चों के बीच में भूरी देह पर सफेद चकत्ते लिए छोटा सा 'मोतिया' था। जिसके चारों पैरों में बच्चों ने सरसों की पायल पहनाई थी और कमर में सरसों की करधन।पूँछ में बाँधी गई सरसों के फूलों की लंबी लड़ियाँ और कानों में सरसों के फूल। मोतिया को सजाते हुए चिरइया बोल रही थी - "पहिन लो सरसों तो गाँव का सिंगार होता है ..." ।
उधर रजेसवा ने यू-ट्यूब पर प्रधानमंत्री का "परीक्षा पर कार्यक्रम" लगा दिया है जिसमें वो कह रहे हैं कि - दिन में कुछ ऐसा समय होना चाहिए कि आप खुद को तकनीकी से दूर रखें। तकनीकी से थोड़ी दूर रहना अपने थोड़े पास हो जाना है....

असित कुमार मिश्र
बलिया
              

Monday, January 6, 2020

पंचाङ्ग

बच्चों के प्रारम्भिक बोध के लिये लिखा है,
पञ्चाङ्ग के महीनों के आगे कोष्ठ में गैगेरियन कैलेंडर 2020-21 की डेट अंकित कर दी है - जिससे समझने में आसानी हो,

प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष बोल कर 15-15 दिन होते हैं, जब रात अंधेरी तो कृष्ण पक्ष, और जब उजली तो शुक्ल पक्ष,
पहले दिन को एकम या प्रतिपदा बोला जाता है -फिर द्वितीया या दूज, तृतीया या तीज, चतुर्थी या चौथ,पंचमी, षष्ठी-छठ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी -तेरस, चतुर्दशी - चौदस, कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस और शुक्ल पक्ष के अंत को पूर्णिमा बोला जाता है.
(यह विद्वानों के लिये नहीं है )

बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर
इन छह ऋतुओं के दो-दो माह -

१. #चैत्र (21मार्च-20अप्रैल)

चैत, चइत, चैत्र कृष्ण प्रतिपदा यानी एकम से आरम्भ होता है, परन्तु शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गणेश-पूजन, कलश स्थापन, देवी पूजन से श्री रामजन्मोत्सव, नवमी तक मनाते हुये - सोल्लास वर्षारम्भ होता है,

चैती एक गायन विधा भी है,

चैतन्यता का प्रतीक है चैत्र !

चैत्र नामक स्वारोचिष मन्वंतर के मनु-पुत्र का भी नाम था.

चित्रा नक्षत्र से सम्बद्ध होने के कारण पहले महीने का नाम चैत्र पड़ा,

इस महीने के पहले दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का चित्र खींचा.

२. #वैशाख (21अप्रैल-21मई)

बैसाख, बइसाख में बसन्त से ग्रीष्म ऋतु में प्रवेश कराता है, रवि गेहूँ आदि की फसल पक कर तैयार होती है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाते हैं वैशाखी.

इसी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय-तृतीया बोलते हैं,

शुक्ल पक्ष चौदस को नृसिंह प्राकट्य भी मनाते हैं.

३. #ज्येष्ठ (22मई-21जून)

जेठ शब्द से परिचित ही होंगे,
यह 'बड़े' के रूप में प्रयुक्त होता है, वट सावित्री व्रत इसी माह की कृष्ण अमावस्या को मनाते हैं, शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा-दशहरा, फिर निर्जला-एकादशी और द्वादशी को नारद-जयन्ती.

४. #आषाढ़ (22जून-22जुलाई)

असाढ़ बोलते पूरब के भइया लोग मिल जायेंगे,

शुक्ल पक्ष की द्वितीया रथयात्रा और पूर्णिमा को व्यास या गुरु-पूर्णिमा.

५. #श्रावण (23जुलाई-22अगस्त)

सावन बोलते ही हृदय झूला झूलने लगता है, हरियाली ही हरियाली, शुक्ल तृतीया ही हरियाली तीज है, और पंचमी नाग-पञ्चमी, शिव भक्तों की बम बम और कृष्ण भक्तों की राधे राधे श्रवण कराने के लिए ही श्रावण सावन आता है.
इसी मास की शुक्ल पूर्णिमा रक्षा बन्धन - राखी नाम से जानी जाती है.

६. #भाद्रपद (23अगस्त-22सितम्बर)

भादों यानी भाद्र पद में दुनिया के सबसे भद्र ने पृथ्वी पर अपना पद यानी पाँव रखा - भाद्र पद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बोलते हैं. शुक्ल पक्ष की अष्टमी "राधाष्टमी".

कृष्ण पक्ष की षष्ठी यानी छठ हल षष्ठी या ललही छठ भी बोली जाती है, कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटनी अमावस्या बोलते हैं.

७. #आश्विन (23सितम्बर-22अक्टूबर)

बोलचाल की भाषा में क्वार या कुआर भी बोला जाता है,

कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि ही पितृ पक्ष बोली गयी - मानो अपने कुल के जनों का स्मरण कराता है - आश्विन का प्रथम पक्ष. इसी मास के द्वितीय यानी शुक्ल पक्ष से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है, जो कि नवमी को पूरा हो दशमी को विजय दशमी - दशहरा बताता है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी शरद-पूर्णिमा के साथ यह माह पूरा होता है.

८. #कार्तिक (23अक्टूबर-23नवम्बर)

कातिक बोलते हुए गंगा नहान का जो मजा है वह तो वही जाने जो कातिक नहाया हो. यह पूरी तरह से लोडेड माह है - "सात वार तेरह त्योहार" वाली कहावत को पूरी करता है -
कृष्ण द्वादशी - गोवत्स द्वादशी
कृ. त्रयोदशी - धन-तेरस, धन्वन्तरि जयन्ती
नरक चतुर्दशी, हनुमान जयन्ती
अमावस्या - दीपावली

शुक्ल द्वितीया - भाई दूज
शुक्ल षष्ठी - सूर्य षष्ठी डाला छठ
शुक्ल अष्टमी - गोपाष्टमी
शुक्ल एकादशी - तुलसी विवाह
शुक्ल चतुर्दशी - वैकुण्ठ-चौदस
शुक्ल पूर्णिमा - कार्तिक पूर्णिमा

९. #मार्गशीर्ष (24नवम्बर-23दिसम्बर)

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने आपको महीने में मार्गशीर्ष कहा -
मासानां मार्गशीर्षोSहम् 10.35,

मृगशिरा नक्षत्र पर इस माह की पूर्णिमा पड़ती है, अतः इस माह का नाम मार्गशीर्ष पड़ा. अग्रहायण को बोलचाल में इसे अगहन या अघहन भी बोलते हैं, अघ यानी पाप को हन मारनेवाला, या अ गहन - जिसमें सरलता हो .

इसी माह की शुक्ल पञ्चमी को सीता-राम विवाह हुआ.

१०. #पौष (22दिसम्बर-20जनवरी)

पूस की रात पढ़ते ही रोआ सिहर गया था, इसके शुक्ल  पक्ष में सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। उस दिन मकर संक्रांति , खिचड़ी पोंगल मनाते हैं.

११. #माघ (21जनवरी-19फरवरी'21)

माघ शुक्ल पञ्चमी यानी सरस्वती पूजा, बसन्त ऋतु का पदार्पण.

१२. #फाल्गुन (20फरवरी-20मार्च'21)

फागुन में फगुनहट चढ़ते ही होली और फाग की आग धधक उठती है, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को शिव-विवाह हुआ, जिसे शिव-रात्रि बोलते हैं - उससे पहले वाली एकादशी - रंगभरी एकदशी बोली जाती है, और होली खेल पूर्णिमा बोल - फाल्गुन वर्ष पूरा कर जाता है.

___
लोक गीतों ने हर माह के अलग अलग गीत गाये हैं,

तुलसीदास जी ने और जायसी ने बारहमासा रचा है,

घाघ, भड्डर और भड्डरी ने अनेक कहावतें इन महीनों के नाम ले लेकर कहीं हैं,

विकिपीडिया पर भी हर माह की जानकारी उपलब्ध है,

जन्म जयन्ती तिथियों और भी पर्वो के बारे में विस्तार भय से संकोच हुआ.
💐
बहुत सी बातें लेख लम्बा होने के डर से नहीं उल्लेखित की गयीं,
फिर कभी ....

साभार
सोमदत्त द्विवेदी जी

Thursday, January 2, 2020

आवेदन पत्र

सेवा में ;
जिला समाज कल्याण अधिकारी अधिकारी बलिया ।

विषय :- छात्र /छात्राओं के संदेहास्पद डाटा के सम्बन्ध में -

महोदय! आपके पत्रांक संख्या C-5563. दिनांक 17 दिसम्बर 2019 का संदर्भ ग्रहण करते हुए, दशमोत्तर छात्रवृत्ति आवेदन करने वाले उन सभी छात्र - छात्राओं की सूची निर्दिष्ट प्रारूप में संलग्नकों के साथ प्रेषित की जा रही है जिनका आवेदन पत्र संदिग्धता की श्रेणी में आ गया है।
प्राचार्य
श्री किशुन काॅलेज़ चक उजियारी बलिया