Monday, May 30, 2016

ये कौन सा दयार है...

पिछले दिनों बारिश और तूफान के कारण बिजली के कुछ पोल गिर गए हैं। लगभग पूरे बलिया जिले में लाइट नहीं आ रही।ऐसा नहीं कि हम बिजली का रोना रो रहे हैं।कहते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा पावर प्लांट इब्राहिम पट्टी बलिया में ही है।सच बताऊँ तो इस पावर प्लांट का इंडीकेटर जलता है बलिया में और बल्ब जलता है बिदेश में। मेरे गांव से तीन किलोमीटर दूर कस्बे में कुछ जेनरेटरधारियों ने जेनरेटर की वैकल्पिक व्यवस्था की है जहाँ एन्ड्रायड मोबाइल चार्ज करने का शुल्क बीस रुपए और साधारण मोबाइल का दस रुपए तय किया गया है। पुलिस विभाग के लिए यह व्यवस्था नि:शुल्क है क्योंकि - जल में रहकर...।
       लेकिन लाइट न आने से अचानक हम अस्सी - नब्बे के दशक वाले गांव में पहुंच गए हैं। कल तक जो लोग अपने कमरों में कैद होकर रिमोट से चैनल बदलते थे वो अब घर से बाहर खटिया निकाल कर बैठने लगे हैं।जबसे गांवो में कूलर लगने लगे तबसे बाग बगीचे कटने लगे। अब छाँह लगती नहीं बस दिखती है।
सावधान इंडिया आज तक और एनडीटीवी में डूबे रहने वाले बिरजू चाचा दुआर पर लगाये गये भिंडी और लौकी में पानी डाल रहे हैं। दिन भर आंखें मोबाइल में गड़ाए चलने वाले लड़के अब सामने भी देखने लगे हैं।
     सबसे दिक्कत हो रही है गांव की भौजाइयों को। ससुराल सिमरन का और सपने सुहाने लड़कपन के टाईप सीरियलों में दुपहरिया बिता देने वाली भौजाईयां काफी मात्रा में अपसेट चल रही हैं। कभी सब्जी में नमक ज्यादा हो रहा है कभी चावल गीला हो जाता है।पिंटुआ के पापा बात बे बात डांट सुन रहे हैं। सीरियल का एपीसोड छूटने का दुख नैहर छूटने के दुख पर भारी पड़ता है।
श्रीमती लालटेन देवी जो अब तक तिरस्कृत और अपमानित होकर किसी कोने में परित्यक्त पड़ी रहती थीं उनकी खोज खबर ली जाने लगी है। लेकिन जबसे इनवर्टर नामक जीव ने घर में प्रवेश किया तबसे मिट्टी का तेल खरीदना बेइज्जती टाइप लगता है। अब रात के आठ बजे तक सबके घर खाना बन कर तैयार हो जा रहा है।मोमबत्ती के अंजोर में खाना खा रहे परभुनाथ चचा के पास पंखा डुला रही चाची पसीना पोंछते हुए कह पड़ती हैं - जो रे अकलेसवा अबकी तुमको वोट नहीं देंगे। परभुनाथ चचा फेसबुक पर हैं। देश दुनिया की खबर रखते हैं। समाजवादी प्रेम में ठेहुना भर डूब कर कहते हैं - तुम हर बात में अकलेस जी को दोस मत दिया करो। अमेरिका में लोग मोमबत्ती के अंजोर में खाने को इंज्वाय करते हैं और इसे 'कैंडिल लाइट डिनर' कहते हैं। अकलेस जी यूपी को अमेरिका बना रहे हैं और तुम गँवार की गँवार ही रह गई।
लालटेन की चचेरी बहन ढिबरी देवी अभी भी कुछ झोपड़ियों में अपने वजूद की आखिरी लड़ाई लड़ रही हैं। जिन पक्के घरों के बरामदे में आठ वाट का सीएफएल जलता रहता था और उसके अंजोर में सीरिया सूरीनाम की बातें चलती रहती थीं वहीं अब खूंटी पर लालटेन टांग दी गई है और उसके नीचे गांव टोले और खेती किसानी की बातें चल रही हैं। पता नहीं कैसे सीएफएल की रोशनी हमें हमारे जड़ से काट डालती है। हम गाँव से उठकर अचानक अंतरराष्ट्रीय सोचने लगते हैं।
      इधर मनोजवा का मोबाइल आफ हो गया है। दो दिन हो गए पिंकिया से गुड मॉर्निंग- गुड नाइट बोले हुए। रह रह कर मोबाइल आन करने लगता है लेकिन 'छप्पन इंच वाला' मोबाइल 'समाजवाद' की तरह आंखें बंद करके सोया पड़ा है।आंखों से आंसू गिरने ही वाला है लेकिन क्या करे आंसुओं की कीमत ही कहाँ होती है। अगर आंसुओं के अम्लीय तत्व से मोबाइल चार्जिंग की सुविधा होती तो मनोजवा कब का पिंकी का मोबाइल चार्ज कर दिया होता।
उधर दिन रात व्हाट्स ऐप पर मैसेज टाईप करने वाले पिंकिया के हाथ तरकारी काट रहे हैं। क्या करे दिल को बहलाने के लिए गालिब कुछ तो करना पड़ेगा न!
जिन घरों के छप्पर पर दिन रात घरभरन 'घातक' और चंदन 'चातक' गाते रहते थे उन छप्परों पर अब कोयलें और कौए बोल रहे हैं।
असली दिक्कत में गांव के वो अमरीकी लोग हैं जो फिल्टर्ड पानी से ही नहाते थे। बरसों बाद चंपाकल का पानी जैसे ही मुंह में जाता है वैसे ही हाइड्रोजन के परमाणुओं से लेकर आर्सेनिक पर चर्चा करने लगते हैं।
      कभी कभी तो लगता है कि नेह के धागे से मजबूत तो कमबख्त इयरफोन का तार है। वो धागा भले ही टूट जाए लेकिन इयरफोन नहीं टूटना चाहिए।इधर जबसे दुनिया मुट्ठी में कर लेने के उपाय सर्वसुलभ हो गए हैं तबसे रिश्ते मुट्ठियों से फिसलते जा रहे हैं। कीपैड वालों हाथों ने कागज को कब छुआ था ठीक ठीक याद नहीं।विडियो चैटिंग ने बच्चों से उनकी गर्मी की छुट्टियों वाला नानी दादी का गाँव ही नहीं परंपरा संस्कृति और उन पुरानी कहानियों को भी छीन लिया है जिनसे सबके भीतर एक गाँव जिंदा रहता था। तकनीकी के इस दौर में सबको मोबाइल चार्ज करने के लिए परेशान देख रहा हूँ। आने वाली पीढ़ियों को इस पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि पहले लोग बिना मोबाइल के भी जिंदा रह जाते थे....
असित कुमार मिश्र
बलिया

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