Wednesday, April 21, 2021

सब मोदिया की चाल है....

सब मोदिया की चाल है....

कोरोना-काल की तमामतर ख़बरों के बीच जहाँ हर तीसरी पोस्ट पर दर्ज़ है - 'फलाने लेखक अब हमारे बीच नहीं रहे' अथवा 'वीर रस के प्रख्यात कवि गुरदेल सिंह "तोप" की दूसरी पत्नी का कोरोना से बयासी साल में निधन'।
इन्हीं विकट परिस्थितियों में कोई 'पाॅजिटिव - न्यूज़' मिलती है तो मन करता है कि - "उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै" देख ही लें, कहाँ क्या अच्छा हुआ है!
पिछले हफ़्ते की बात है। हमारे कालेज को उप जिला मजिस्ट्रेट श्री अभय कुमार सिंह के द्वारा अस्थायी आश्रय स्थल बनाया गया था।इसी विषय को लेकर प्राचार्य-कक्ष में हम सभी की मीटिंग चल रही थी।
साथी अध्यापक प्रवीण कुमार चौबे छोटी-मोटी समस्याओं से सदैव जूझते रहते हैं। मैंने बहुत बार कहा भी कि विवाह कर लीजिए। इन जैसी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी।
चौबे जी उस समय सर्दी - ज़ुकाम से पीड़ित थे। हालांकि सर्दी - ज़ुकाम, बुखार- बदन में दर्द और कमज़ोरी जैसे बहाने हम मास्टरों के आगे हर दूसरा बच्चा बनाता ही है, इसलिए ना तो हम इसे सीरियसली लेते हैं और ना ही लेंगे।
अचानक चौबे जी ने कहा - "सर! बैठा नहीं जा रहा है। लाइब्रेरी में जाकर लेटता हूँ"।
               थोड़ी देर बाद सहायिका सुनीता जी ने आकर बताया - "चौबे जी तो लगता है कि दुनिया से चले गए" !
सहसा विश्वास नहीं हुआ। चौबे जी जिम्मेदार अध्यापक हैं। उन्हें कालेज का नियम पता है कि दस से तीन आप कालेज से कहीं नहीं जा सकते। मैंने जाकर देखा।उनके गिरते हुए स्वास्थ्य को देख कर उन्हें कालेज से छुट्टी दी गई। और कोरोना की जाँच कराने के लिए भी कहा गया।
लोग कहते हैं कि मित्रता बचपन में ही होती है बड़े होने पर तो सम्बन्ध बनते हैं। चौबे जी के साथ कबसे हूँ यह ठीक - ठीक याद भी नहीं। पिछली बार जब नेट का रिजल्ट आया था तब मैंने पूछा था - क्या रहा रिजल्ट?
उनका जवाब था - नेगेटिव।
एल. टी. का रिजल्ट आया था तब भी मैंने पूछा था।
उनका जवाब वही - नेगेटिव।
उसी दिन रात को लगभग साढ़े नौ बजे मैंने व्हाट्स-ऐप पर चौबे जी से पूछा था - क्या रही रिपोर्ट?
चौबे जी ने जो जवाब दिया उससे आँखें भर आईं। मित्र का कोई भी रिजल्ट पाॅजिटिव आए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है!मैंने तुरंत उन्हें शुभकामनाएँ दीं ....।
                        संभव है मेरा यह लेख हास्पीटल की बेड पर पड़े हुए मेरे कोरोना - पाॅजिटिव दोस्त या उनके परिजन पढ़ रहे होंगे। संभावना है कि होम - आइसोलेशन की कैद काट रहे जिन आँखों तक यह लेख जाएगा उन्होंने फेसबुक पर लाशें और जलती हुई चिताओं वाले अनगिनत पोस्ट्स पहले ही देख लिए होंगे। जिन्हें साँस लेने में दिक्कत हो रही होगी उन्हें  लग रहा होगा वो बहुत सीरियस हैं और चौबे जी को थोड़ी - बहुत समस्या रही होगी!
जिन्हें खाने का स्वाद नहीं मिल रहा होगा और जो बुखार की आग में जल रहे होंगे वो मन ही मन कह रहे होंगे कि अच्छा बेटा जी! जब तुम्हारा रिजल्ट आएगा न पाॅजिटिव तब पूछेंगे!
                   आज लगभग दस दिनों बाद चौबे जी के पचहत्तर प्रतिशत रिकवर कर लेने पर आपसे बता रहा हूँ कि वो आपसे कहीं ज्यादा सीरियस थे। फिर भी उन्हें न वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ी ना हास्पिटलाइज्ड होने की। हाँ! जो दवाएँ सामान्य रूप से दी जा रहीं हैं उनके साथ-साथ आत्मबल की जरूरत थी जिसके लिए हम - आप जैसे लोग हैं।
दस प्रतिशत विशेष मरीजों को छोड़ कर आज कोरोना - पाॅजिटिव व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा आत्मबल और हमारे-आपके सहयोग की आवश्यकता है न कि हास्पिटलाइज्ड करने की।
बगल के गाँव के एक परभुनाथ चचा हैं उनमें भी सारे लक्षण वही थे लेकिन प्रचंड मोदी विरोधी होने के कारण न तो उन्होंने सीरियसली लिया और न ही कहीं हास्पिटलाइज्ड ही हुए।
बल्कि जिनकी रिपोर्ट पाॅजिटिव आई है उन्हें वो समझाते भी हैं - "देख लो! सर्दी - जुकाम पहले नहीं होता था! अरे! ई सब मोदिया की चाल है। एक दिन अडानी - अम्बानी को बेच देगा सब कुछ देख लेना "।
और कमाल यह कि जो अंतिम साँसे गिन रहे थे, जिनके "गऊ - दान" की तैयारी चल रही थी वो खड़े होकर कहते हैं - "भइया! ठीके कहे हैं आप। पी. एम. केयर फंड का पइसवा सब खाइये न गया ई लोग"।  
               मैंने बस मनोचिकित्सक का नाम सुना है आज तक , देखा नहीं है। जरुर वो लोग भी परभुनाथ चचा की तरह ही होते होंगे।
इसलिए पैनिक नहीं होना है, घबराना नहीं है। मैंने खुद कल एक लड़के के मौसा जी को हास्पिटलाइज्ड कराया था आज पता चला कि उन्हें बस फ्लू है।
इसी तरह देश के विभिन्न क्षेत्रों से सूचना मिल रही है कि ज्यादातर दवाएँ और जगह अनावश्यक लोगों ने घेर रखीं हैं।
आपकी सूचना के लिए बताना जरुरी है कि फेसबुक पर भी हिंदू - मुस्लिम, भाजपाई - कांग्रेसी, आपियों- बहुरूपियों की संख्या नब्बे प्रतिशत है ; आदमियों की संख्या भी दस प्रतिशत ही है जो कोरोना योद्धा के रूप में सबके लिए इलाज और आक्सीजन तथा दवाएँ उपलब्ध कराने में लगे हुए हैं।
उन्हें ग़लत सूचनाएँ न दीजिए।दस प्रतिशत उन विशेष मरीजों के लिए चिकित्सा - उपचार उपलब्ध कराने दीजिए जिन्हें वास्तव में उसकी जरूरत है।
वैसे भी ना जाने कितनी बड़ी आबादी को कोरोना हुआ और ठीक भी हो गया उन्हें पता तक नहीं चला।जिन्हें हो गया है उन्हें डराइए मत। उनका आत्मविश्वास बढ़ाइए। उनसे भले ही कहिए कि - सब मोदिया की चाल है।
मैं जानता हूँ कि आप जिस फलाने कवि के मरने की बातें फेसबुक पर कर रहे हैं, उनके पहले काव्य - संग्रह का नाम नहीं पता है आपको।
मैं समझ सकता हूँ कि वीर रस के अप्रतिम कवि गुरदेल सिंह "तोप" को उनकी दूसरी पत्नी ने बयासी साल कैसे झेला होगा! इसलिए जो बचे हुए हैं उनकी चिंता कीजिए। आपकी सूचना से किसी पर ग़लत असर न पड़े ध्यान दीजिये।
बहुत बड़ा नहीं लिखना है।
बस आखिरी बात बता दूँ कि अपनी रिपोर्ट नहीं दे रहा हूँ, उसकी आवश्यकता भी नहीं...!

असित कुमार मिश्र
बलिया

                      
                       

        

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