अभी तक अगर आपको मौसम ने फागुनी कदमों की आहट न दी हो, खेतों में फैली सरसों की पियरी चुनरी न दिखी हो, गेहूं की हरियाली ने कुछ कहा न हो, तो चले आइए बलिया में जहाँ कदम कदम पर किसी अरविंद अकेला, दिनेश दुकेला से लेकर परमोद परदेशी तक के फागुनी गीत यह बताने के लिए तैयार हैं कि जिले में आजकल जीजाओं का आतंक बढ़ गया है। कोरस मिलाने वाली सालियां भी पीछे से द्विअर्थी शब्दों की पिचकारी ताने गायकों की अश्लीलता का मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं।चारों तरफ जब फागुनी बयार बहनी शुरू होती है जब अलसाया सा मौसम श्रृंगार की ओर खींच रहा होता है, तभी माध्यमिक शिक्षा परिषद् उत्तर प्रदेश अपनी परीक्षाएं कराने लगता है।तब महीनों से कापी कलम किताब से दूर रहने वाला किसी बलियाटिक दिनेसवा का मन, गा ही उठता है - ''कागज कलम दवात ला, लिख दूँ सनम दिल पर नाम तेरा"... परसुराम चौधरी खुश हैं कि- एहू भागे तो थोड़ा पढ़ लो।
इधर दिनेसवा जैसे ही गाईड खोलता है ख्वाबों में सुमितरी गाने लगती है - 'किताबें बहुत सी पढी होंगी तुमने बता मेरे चेहरे पर क्या क्या लिखा है' और यहीं से 'ज्ञानमार्गी' हो रहा दिनेसवा 'प्रेममार्गी' होकर, व्हाट्स ऐप पर मैसेज करता है - 'ए सुमितरी कल परीक्षा में पटियाला सूट पहन कर आना हमहूँ पठान कोट पहन कर आएंगे' ।
इधर कालेजों ने परीक्षा में होने वाली असुविधाओं से बचने के लिए पहले ही ऐलान कर दिया कि अबकी दो हजार रुपये 'सुविधा शुल्क' लेंगे। प्रबंधक जी लोग हिरन बने कस्तूरी सम मास्टरों की तलाश में हैं। पहला पेपर हिन्दी का है आज। पूरे इलाके में कोई हिन्दी का मास्टर नहीं मिलता। जिससे पूछिए वही कहेगा - भक्क! हिन्दी भी कोई पढने वाला विषै है जी। अरे एगो जीवन परिचै याद कर लो आ किसी का आए वही उतार देना। एगो भाषा-शैली याद कर लो। किसी का आए वही लिख देना। आ जगहे-जगह थोड़ा भौंकाली शब्द कापी करके पेस्ट कर देना जैसे गौरव स्वाभिमान चित्रात्मकता, लाक्षणिकता टाईप।
इधर संटुआ के हाथ से कलम जैसे छलक पड़ती है। जो उंगलियां फेसबुक पर प्रति मिनट पांच पोस्ट टाईप करती थीं, अब वो कलम पकड़ना भूल रही हैं। उसे इस बात का अफसोस है कि बोर्ड वाले फेसबुक पर ही परीक्षा क्यों नहीं कराते!
इधर सुबह हाईस्कूल के हिन्दी के पेपर में प्रश्न आया है कि उर्वशी किसकी रचना है?
सुदर्शन मास्टर साहब ने उत्तर लिखवा दिया - रामधारी सिंह दिनकर।
तभी दुखहरन मास्टर साहब ने आकर कहा कि उर्वशी जयशंकर प्रसाद की रचना है। अब दोनों मास्टरों के बीच "आप ही ज्यादा जानते हैं?" नामक वाक्य का आदान-प्रदान होते हुए "तुम ही ज्यादा जानते हो?" से आगे बढ़ कर "हरे तोरी बहिन की.... तूहीं ढेर जानतारे?" तक आ गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि 'उर्वशी' अनादि काल से ही विवाद का कारण बनती आई है और आगे भी बनती ही रहेगी।
इधर जबसे दुबारा तीबारा हाईस्कूल इंटर पास करने का चलन बढा है, तब से अध्यापकों और परीक्षार्थियों के बीच उम्र का फासला कम होता जा रहा है। अब अध्यापक परीक्षार्थी से कहते हैं - ए चचा! आरामे से लिखिए उडाका दल ने फोन किया है कि आज अपने सेंटर पर नहीं आएंगे। इस प्रकार 'सब पढें सब बढें' कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। इधर जांच पत्र से फोटो मिला रहे परमेसर मास्टर साहब संटुआ से कहते हैं - तुम्हारा फोटो तो मैच नहीं खा रहा है जी! संटुआ आह भर के कहता है - मास्साब! असली चीज है इमेज। चेहरे का क्या वो तो कभी भी बदल सकता है।
माट्साहब का दिल दरिआव हो जाता है कि लौंडा साहित्यकार बन रहा है।
इधर बालकिशुना का मूड बन ही नहीं रहा है उत्तर क्या लिखे। गुटका फाड़ कर मुंह में डाल लेता है.... हाँ अब तनी दिमाग अस्थिर हुआ है। लेकिन भरोसा तो अब भी नहीं हो रहा है कि कोई बढिया मोबाइल दु सौ एकावन रुपये में कैसे मिल जाएगा? दिल है कि ललचा रहा है और दिमाग कह रहा है कि अईसहीं मोदी जी 'पन्द्रह लाख' रुपये कह कर खाता खोलवा दिए थे। कुछ भी हो चार मोबाइल तो खरीदेगा ही। अब एक मनोरमी को भी तो देना पडेगा न!
इस परीक्षा महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण दिन गणित वाला होता है जब रुम नंबर आठ की खिड़की पर लटक कर कोई 'व्यास' जी किसी 'रचना' जी से पूछ रहे होते हैं कि- हई 'त्रिज्या' वाला सवाल हुआ कि नहीं?
कहीं किसी 'रेखा' के आसपास 'आधार' मंडरा रहे होते हैं तो कहीं किसी 'बिन्दु' को कोई 'दसमलव' हसरत भरी निगाहों से देख रहे होते हैं। किसी 'परिधि' के हाथों में सातवां का उत्तर धरा रहे 'कर्ण' कहते हैं - हम यहीं खड़े हैं आपका एक भी छूटेगा नहीं।
इन दिनों मास्टरों की मांग कार्बन कापी के सापेक्ष ही बढ़ जाती है। और परीक्षा के बाद कार्बन कापी और मास्टरों का एक ही हाल होता है - कोई नहीं पूछता।
मंडल से लेकर ब्लाक तक की गाड़ियां दौड़ रही कार्बन कापी के पीछे। कार्बन कापी है कि द्रौपदी के चीर की तरह बढती ही जा रही है।
इधर अखबारों में खबर है कि नकल करने वालों से सख्ती से निपटेगी सरकार। और बोर्ड का दावा है कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में परीक्षाएँ संपन्न हो रही है।उधर अभिभावक परमेसर राय से लेकर अध्यापक सुमेसर जी और सभी परीक्षार्थी परीक्षा में 'फील गुड' कर रहे हैं।यहां धृतराष्ट्र अपने कमरे में टहल रहे हैं क्या करें उनकी सुनता ही कौन है! अंत में खिसियाये धृतराष्ट्र उठे और उन्होंने आंखों पर पट्टी बांध ली...
असित कुमार मिश्र
बलिया
Thursday, February 18, 2016
और धृतराष्ट्र ने आंखों पर पट्टी बांध ली (हास्य व्यंग्य)
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बहुत सही कहा असित भैया.
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