Tuesday, March 22, 2016

सबसे खतरनाक होता है.....

इधर बड़ी बेरंगत बेनूर और बेस्वाद हो गई है जिन्दगी। एकदम पोटैशियम सायनाइड टाईप। मने थोड़ा आसान भाषा में कहें तो जिंदगी जहर हो गई है।मुझे लग रहा है मैं प्रतिक्रियावादी या आक्रामक हो रहा हूँ।मित्रों की राय है कि कुछ दिनों तक लिखो पढो मत, शांति से रहो। मैं भी चाहता हूं शांत रहना... एकदम मुर्दा शांति से भर जाना। लेकिन क्या करुं!अभी परसों ही सेन्ट्रल बैंक में गया था पैसे निकालने। एक औरत हैरान-परेशान आई, और गिड़गिड़ाते हुए बोली कि - मेरी गवाही कर दीजिए। मैंने उसकी धन निकासी पर्ची पर लिखी राशि देखी - एक हज़ार रुपए मात्र। मैंने पूछा कि कैसी गवाही है यह? उसने बताया कि वृद्धा पेंशन का पैसा लेना है उसमें एक खाताधारक की गवाही चाहिए। मैंने उसका चेहरा देखा। गरीबी और बुढ़ापे में किसका प्रतिशत ज्यादा था कह नहीं सकता। हां इतना जरूर कहूंगा कि एक हज़ार रुपए गबन करने से पहले सत्तर बार हार्ट फेल हो जाता उसका। मैंने गवाही कर दी। गवाही की देर थी बस, पांच सात औरतें और आ गईं। मैंने उनकी भी गवाही कर दी।
मैं अपने लाईन में खड़ा हो गया। औरतें अपनी लाईन में बैठ गई थीं। जबकि उनके पीछे लंबी ब्रेंच खाली पड़ी थी।आधे घंटे बाद चपरासी उन सब औरतों का पासबुक चेक करते हुए बोले - असित कुमार मिश्र कौन है? मैं अपनी लाईन में से ही बोला - मैं हूं सर। चपरासी ने कहा - सबकी गवाही किए हैं आप। सबको पहचानते हैं?
मैंने कहा - विजय माल्या नौ हजार करोड़ रुपये ले गए। आप पहचानते थे न उन्हें!
चपरासी चुप हो गए।और उन औरतों का पासबुक अगले काउंटर पर रख दिया। मतलब तीन बजे तक उन्हें पैसे मिल जाते। औरतें मुझे रह रह कर श्रद्धा भाव से देख रही थीं और मैं असहज हो रहा था।मैं सोच रहा था कि आज तो मैंने इनकी गवाही कर दी। कल कौन करेगा? भारत के हजारों लाखों बैंकों में उन गरीब आम औरतों को रोज छोटी-छोटी बातों पर कितनी परेशानियां होती होंगी। दिन भर एक आम आदमी एक हज़ार रुपए के लिए लाइन लगाए है,चार काउंटर की चेकिंग के बाद हजार रुपये मिलने की खुशी... जिससे बेटी के लिए एक साड़ी ली जाएगी और पोते के लिए प्लास्टिक वाले झुनझुने।नवकी पतोहू के लिए कुछ शिल्पा छाप चार नंबर की बिंदी के पत्ते और एल एन छाप सात रुपये के नाखून पाॅलिश.... लेकिन वो कौन लोग हैं जो देश का करोड़ों रुपया लेकर भी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्हें जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध है। हजारों रुपए वर्ग फुट वाली औद्योगिक जमीनें जिन्हें कौड़ियों के भाव मिल जाती है।
मैं चुपचाप लाईन में से निकला अपनी पर्ची फाड़ी और खाली हाथ घर आ गया।
               आज का अखबार खोला पढ़ने के लिए तो बड़ी सी फोटो मुख्य पेज पर है। दिनेश लाल यादव को यश भारती से सम्मानित करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दिख गये। भोजपुरीभाषी लोगों में 'निरहुआ' के नाम से विख्यात दिनेश लाल यादव ने मनोज तिवारी के बाद भोजपुरी का खूब दोहन किया।इनके फूहड़ और भद्दे गीतों से हमारे यहाँ औरतें और लड़कियां फाल्गुन के महीने में घर से निकलना नहीं चाहतीं। 'निरहुआ सटल रहे' टाईप गीतों से महिलाएं अक्सर आंख झुकाते दिख जाती हैं। बिरहा शैली को नयी पहचान दी है दिनेश यादव ने। इनकी निरहुआ रिक्शा वाला और पटना टु पाकिस्तान फिल्म चर्चित रही। लेकिन दर्जन भर नाम ऐसे थे जो इनसे करोड़ गुना बेहतर थे। मनोज तिवारी 'मृदुल' भारत के एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं जिनपर नीदरलैंड ने डाक-टिकट जारी किया।लेकिन फूहड़ता की नदी में इन्होंने भी समयानुसार स्नान किया और उसी क्रम में दिनेश भी हैं।
मैंने चुपचाप अखबार रख दिया। फेसबुक से दिनेश लाल यादव जी को अन्फ्रेंड किया और चुपचाप शांति से बैठ गया... एकदम मुर्दा शांति से।
      मुझे मुख्यमंत्री जी से कोई शिकायत नहीं। दिनेश लाल यादव जी से भी कोई शिकायत नहीं। यश भारती पुरस्कार की चयन प्रक्रिया से भी कोई शिकायत नहीं। यकीन कीजिए मैं शांत बैठा हूँ....एकदम मुर्दा शांति से।
... लेकिन पाश ने कहा कि सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना। शायद मैं खतरे के निशान से ऊपर जा रहा हूँ। और उत्तर प्रदेश ????
नहीं! नहीं!!कुछ नहीं पूछना है मुझे। मुझे शांत बैठना है... एकदम मुर्दा शांति से।
असित कुमार मिश्र
बलिया

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