खानसाहब ने उठते हुए अफसोस से कहा - भईया तो हम जाएं?
वर्मा जी ने खटिया पर लेटे हुए ही कहा - तो जाओगे नहीं तो क्या करोगे! नेवता भेजवाए थे तुम्हारे यहाँ?
खानसाहब ने लगभग अपनी ही उम्र वाली साइकिल जो दीवार से टिक कर खड़ी थी उसे पकड़ा और चलने लगे। अचानक कुछ याद आया। फिर साइकिल वहीं खडी की और फिर कुर्सी पर आ कर बैठ गए। और पूछा - अच्छा भौजी का क्या हाल है अब?
वर्मा जी उदास हो गए दोनों हाथों को सर के नीचे लगाया और लेटे हुए ही कहा - लगता है बुढ़िया एक महीने से ज्यादा नहीं जियेगी।
कुछ देर गंभीर रहने के बाद खान साहब ने फिर पूछा - अच्छा भईया 'उनका' क्या हाल है?
इसी सवाल पर चिढ़ जाते हैं वर्मा जी।इस बार भी खटिया के पास रखी लाठी उठाकर बूढ़े हाथों से दो लाठी जमा कर बोले - भाग सरवा ईहां से।
अचानक खान साहब ने मुझे देखा और फिर वर्मा जी से कहा - ए भईया आतिश बाबा भी आ गए। कमे खर्चा में हो जाएगा। अब भी हां कह दीजिए।
मैं तेरह सौ बार बता चुका हूं कि खान चचा मेरा नाम आतिश नहीं असित है... खैर! बहुत दुख भरी कहानी है इनकी।लगभग चालीस साल पहले वर्मा जी के बियाह में खान साहब का दिल चोरी हुआ था। और दिल चुराने वाली वर्मा जी की साली थीं सांवली रंगत कसरती देह वाली छींटे के साड़ी पहने।
अब वर्मा जी खटिया पकड़ चुके हैं उम्र लगभग सत्तर साल हो चुकी है उधर घर में इनकी मेहरारू भी खटिया पकड़े इनसे पहले सुहागिन ही निकल लेना चाहती हैं। खान साहब भी साठ पार तो होंगे ही, उधर वर्मा जी की साली साहिबा भी साठ पार हो चुकी होंगी। लेकिन अब भी खान साहब वर्मा जी की साली से बियाह करने की जिद पकड़े रहते हैं।
मैंने खान साहब से कहा - हई ओसामा बिन लादेन की तरह दाढ़ी रखे हैं तो कैसे बियाह होगा?
खान साहब ने उसी गंभीरता से कहा - बाबा हम दाढ़ी बनवा लेंगे और हलुमानचलीसा भी याद है हमको।
उधर घर के अंदर बुढ़िया को उनकी नातिनों ने सहारा देकर उठा दिया। बाल्टी में खूब गाढ़ा ललका रंग तैयार हो गया। और सहारा देकर ही छत पर चढ़ा दिया और पीछे से पकड़ कर खड़ी हो गईं। पांच मिनट बाद ही छत पर से दो बूढ़ी कांपती कलाइयों ने बाल्टी भर रंग नीचे खान साहब पर फेंक दिया।
खान साहब ने चौंक कर ऊपर देखा।लेकिन तब तक बुढ़िया की नातिनों ने बुढ़िया को खींच लिया था।
ललका रंग में नहा चुके खान साहब ने चिल्ला कर कहा - का हो गोरी ईहे हऽ होरी
ऊपर से बुढ़िया की कांपती आवाज आई है - हं हो तहार बहिन... ईहे हऽ होरी।
इधर वर्मा जी भी खटिया पर से उठ कर हंसने लगे हैं। थोड़े बहुत छींटे हम पर भी पड़े हैं। खटिया पर की चादर भी अब लाल हो गई है। अंदर से नातिनों ने गरम पुआ लाकर रख दिया है। दोनों बूढ़े खाने लगे हैं अब। तभी खान साहब ने फिर कहा है - तो ए भईया बियाह पक्का समझें न?
वर्मा जी ने डांटा है - एकदम्मे आवारा हो क्या! खाने में बोलते नहीं है चुपचाप खाओ...
हो सकता है बहुत लोगों को यह कहानी लगे। सच भी है परसों ही तो पेपर में निकला था कि किसी हिन्दू ने मुसलमान पर रंग डाल दिया तो उसे जेल हो गई।जब भी होली आती है तो 'मीन राशि' वाले पानी बचाओ अभियान में लग जाते हैं। जल ही जीवन है इसमें संदेह नहीं। लेकिन बुढ़िया ने जो पानी बर्बाद किया है न आज,उसी बाल्टी भर पानी पर हमारी संस्कृति टिकी है। सुना है अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। लेकिन त्योहारों की यह संस्कृति मिट गई न तो उस विश्व युद्ध से पहले ही हम सब आपस में लड़ कर मर जाएंगे, और फ्रिज में पानी की बोतलें रखी ही रह जाएंगी।
त्योहार ऐसे ही उमंग और ऊर्जा वाले होते हैं।रंग देखकर ही,जी गई होगी बुढ़िया। छत की सीढ़ियाँ चढते हुए फिर से जवान हो गई होगी। खान साहब का जोगीरा सुनकर बिना दांत वाले बूढ़े कपोलों पर लाली छा गई होगी। दो मिनट में सदियां जी गई होगी बुढ़िया। इधर मेरी अंतरात्मा तक भींग गई है कुछ छीटों से ही। और खान साहब.... शायद फिर डांट सुन रहे हैं - एकदम्मे आवारा हो क्या!
आप सभी को उमंग उत्साह ऊर्जा के रंग पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
और उन भौजाइयों को भी शुभकामनाएं, जिनका होली के दिन ही सिर में दर्द हो जाता है :)
असित कुमार मिश्र
बलिया
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