Wednesday, October 12, 2016

आई लव यू संगीता यादव... (कहानी)

आई लव यू संगीता यादव...

डा०अंजना त्यागी मैम मेरे शहर में स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं। बनारस की हैं। मेरी फेसबुक फ्रेंड भी हैं। आज बहुत दिनों बाद इनके घर आया हूँ। अंजना मैम चाय का कप मुझे देते हुए, बनारसी लहज़े में बोलती हैं-'तो रजा शादी कर ले मुझसे और घर ले चल अपने।' मैं बोलने ही वाला हूँ कि- 'क्या मैम आप भी न!' तब तक बगल वाले कमरे से डा०सौरभ त्यागी सर की आवाज आती है-भाई असित गाड़ी की चाभी मेज़ पर ही है...। बंटी भी कहीं जाने की बात पर दौड़ कर आ गया है-मम्मा मैं भी चलूँगा। हम तीनों खूब हँसते हैं। बहुत प्यार है इस फैमली में। थोड़े बहुत छींटे मुझ तक भी आते रहते हैं।
      तभी कालबेल बजती है। अंजना मैम खीझ उठती हैं। मेरे साथ के समय में कोई पेशेन्ट नहीं देखना चाहती हैं। बेमन से बोलती हैं-कौन है? आ जाओ। एक औरत दो बच्चों के साथ आई है। उम्र से ज्यादा अनुभव और निस्तेज चेहरा उसकी कहानी बयां कर रहे हैं। उसकी थकी सी आवाज़-नमस्ते डाक्टर साहब। अरे!ये आवाज़ तो सुनी सुनी सी लगती है। ध्यान से देखता हूँ उसे। अरे संगीता यादव है ये तो। मेरी जान की दुश्मन। आठवीं में साथ पढ़ती थी। बस दो लोगों से मुझे बहुत डर लगता था। एक गणित के माट्साब से और दूसरा संगीता से। वो मेरे बाल पकड़ कर खींचते थे और ये गाल। न जाने कितनी कोमल छड़ियाँ टूटी होंगी इस वज्र देह पर लेकिन आँसू हर बार इसी की आँख में होते थे। बहुत तेज बोलती थी ये। मेरी रुचि संगीत और अभिनय में होने के कारण कहती थी-'ई असितवा एक दिन अम्ता बच्चन बनेगा'।थोड़ा मौका पाते ही मेरे गाल खूब जोर से खींचती थी। मैंने कई बार माट्साब से शिकायत भी की पर हर बार वो इतनी मासूमियत से कहती थी -"नहीं जी ई झूठ बोल रहा है" और मुझे ही डांट सुनकर बैठना पड़ता था।
      'संगीता तुम मर जाओगी यही हाल रहा तो।प्रोथाम्बिन का लेबल बहुत कम हो रहा है। जाओ ये टेस्ट करा आओ'-अंजना मैम की व्यावसायिक आवाज़ पर चौंक सा जाता हूँ। कितना आसान होता है डाक्टर के लिये किसी आदमी का मर जाना। ओह!कितनी बदल गई है संगीता। मैं तो चाहता ही था कि संगीता मर जाए।क्लास में आलमारी पर एक छोटी सी छुरी रखी रहती थी। एक दिन जैसे ही संगीता पास आई मैंने वो छुरी निकालते हुए कहा-देखो संगीता, जान से मार दूंगा। वो हँसने लगी...छुरी भी छीन ली,खूब जोर से गाल खींचते हुए बोली-'मैं मरने वाली नहीं हूँ बच्चू।'
     सीढ़ियों से उतरती हुई संगीता के पास दौड़कर जाता हूँ।और बोलता हूँ-संगीता पहचाना? आज गाल नहीं खींचोगी?क्या हाल बनाया है यह?कैसी हो कहां रहती हो आजकल....।फिर दस मिनट बातें हुई हैं संगीता से। पता चला कि इन्टर के बाद उसकी शादी हो गई थी। उसके पति की नौकरी आर्मी में लगते ही उसने मेरठ छावनी में नियुक्त एक महिला सिपाही से शादी कर ली।और संगीता तभी से परित्यक्त गांव में पड़ी है।भाई-भौजाई के प्रेम से भी तलाकशुदा। मां-बाप इसी सदमे में गुजर गए।
अचानक संगीता पूछती है-तुम क्या कर रहे हो असित?
'रिसर्च कर रहा हूँ स्त्रीविमर्श पर'-मैं बताता हूँ।
वो मुस्कुरा देती है...मेरा स्त्री विमर्श रो उठता है। मैं उसकी साड़ी पकड़े बच्चे का गाल सहलाते हुए पूछता हूँ-क्या नाम है इसका?
बच्चा खुद बोल उठता है-"सोनू" नाम ह हमार।
ऊफ्फ! सोनू तो मेरा नाम है घर वाला। मतलब जिसे प्रेमी के रुप में न पा सकी उसे पुत्र के रुप में पा लिया! मैं अब दूसरी ओर देख रहा हूँ। वो सीढ़ियाँ उतर कर चली गई।
    मैं अंजना मैम के कमरे में आकर सोफे पर गिर सा जाता हूँ। मैम पूछ रही हैं-अरे तुम गए नहीं!
मैं कहता हूँ-मैम इसकी जान बहुत कीमती है। थोड़ा देख लीजिएगा प्लीज़। और आने को मुड़ता हूँ। तभी मैम की आवाज-अरे हां,असित!तुम बहुत अच्छा लिखते हो। कोई 'प्रेम-कहानी' लिखो न।क्या बोरिंग टाईप लिखते हो।
मैं जेब से कलम निकालता हूँ और उसकी पर्ची पर 'पेशेंट नेम' और 'संगीता यादव' के बीच जो खाली जगह है वहां "आई लव यू" लिख देता हूँ।
दरवाजे से मुड़कर देखता हूँ,अंजना मैम के आँसू उस कागज़ पर गिर कर मेरी अधूरी प्रेमकहानी को पूरा कर रहे थे।
असित कुमार मिश्र
बलिया

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