राजनीतिक दोस्तों के लिए...
2019 चुनाव का खुमार धीरे-धीरे गहराता जा रहा है। अपनी अपनी पार्टियों के झंडों के बीच दूसरी पार्टियों की आलोचना का दौर ज़ारी है।
चूंकि फेसबुक पर आलोचना और बदतमीज़ी में विभेद अभी नहीं किया जा सका है। इसलिए फेसबुक की आलोचनाएँ प्राय:बदतमीज़ियों में बदल कर सम्बन्ध विच्छेद का कारण बन जातीं हैं।
फेसबुक आज बहुउद्देशीय मंच हो गया है,यह बताने की बात नहीं है। सबके अपने-अपने तरीके और उद्देश्य हैं। कोई इसी मंच पर जन सहयोग से समाज के गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षित करने का पुनीत कार्य कर रहा है तो कोई अपनी पार्टी की नीतियों और योजनाओं को व्यापक समुदाय के लोगों तक फैला रहा है। यहीं कोई ब्राह्मण संगठन के नाम पर विभिन्न गोत्रों के ब्राह्मणों को एक मंच पर लाने का भगीरथ प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ अध्यापकगणादि कार्यक्षेत्र की समस्याओं को लेकर ग्रुप की स्थापना कर उसमें विचार-विमर्श करते हैं... सबका कार्य महत्त्वपूर्ण है और सबकी अपनी-अपनी विचारधारा है। मेरी तरफ से सबका सम्मान और समर्थन है।
खैर! मुझे यहाँ अपनी बात कहनी थी इसलिए अपनी ही बात करुँगा। मैंने फेसबुक बस साहित्यिक गतिविधियों के लिए ही ज्वॉइन किया था ।तब प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं तक मेरी पहुँच नहीं थी और लिखने-पढ़ने की अभिरुचि ने मुझे यहाँ ला पटका था।तभी मैंने यह भी निश्चित किया था कि राजनीति पर नहीं लिखना है। लेकिन कभी-कभी भावोद्वेग में एकाध लेख लिखा ही, इससे इन्कार भी नहीं। क्योंकि 'पाश' के शब्दों में कहूँ तो -" मैं आदमी हूँ। बहुत छोटा - छोटा कुछ, जोड़ कर बना हूँ।"
इधर कुछ दिनों से देखने में आ रहा है कि राजनीतिक लोग चुनाव आयोग द्वारा प्रदत्त 'नोटा' का उपहास कर रहे हैं और 'नोटा' चुनने वाले लोगों को मूर्ख, कांग्रेसी, आपिया सर्पोला कह रहे हैं और पोस्ट लिख रहे हैं कि - 'नोटा का प्रयोग करने वाले देशद्रोही हैं।'
भारतीय राजनीति में विकल्प की ऐसी रिक्तता कभी नहीं थी। पिछले कुछ चुनावों में 'नोटा' का बढ़ता प्रतिशत इस बात का प्रमाण है। देश की एक बड़ी आबादी राजनीति में सुधार की जरूरत महसूस कर रही है लेकिन सत्ता बदलती रही व्यवस्था जस की तस है। इसलिए अगर किसी के द्वारा नोटा का विकल्प चुना जा रहा है तो वह आपिया कांगी या देशद्रोही कैसे हो गया?
पहली बात तो यह कि किसको और किसने यह अधिकार दे दिया कि आप देशभक्ति और देशद्रोही का सर्टिफिकेट बाँटेंगे? और यह सर्टिफिकेट किस प्रकार से उपयोगी है?
दूसरी बात भारत निर्वाचन आयोग ने नोटा की व्यवस्था की है और कोई भी व्यक्ति जो हर दल की छद्म राजनीति से दु:खी है वह नोटा का प्रयोग कर सकता है।
कुछ मित्र लिख रहे हैं कि नोटा का प्रयोग करने से आप सरकार से कोई माँग नहीं कर सकते। आपका वोट देना न देना और नोटा का प्रयोग करना सब एक बराबर है...।
राजनीति शास्त्र के ऐसे विद्वान प्रोफेसर्स से निवेदन करना चाहता हूँ कि जीवन में एक बार ओएमआर शीट पर भी परीक्षा दे लीजिए ताकि आपको पता चले कि अगर प्रश्न आए - रामचरितमानस किसकी रचना है -
1- सूरदास
2-नरहरिदास
3-अग्रदास
4-इनमें से कोई नहीं
और अगर आप "इनमें से कोई नहीं"(नोटा) का गोला काला करते हैं तो न आपकी ओएमआर शीट खराब होती है और न ही आप परीक्षा से संबंधित किसी सवाल-जवाब से वंचित किए जा सकते हैं।
अगर आयोग ने " इनमें से कोई नहीं" का विकल्प दिया है चाहे वो आयोग, चुनाव का हो या लोक सेवा का तो आप इनमें से कोई नहीं का प्रयोग कर सकते हैं।
रही बात वोट न देने की तो जहाँ तक मेरी जानकारी है आज तक किसी भी चुनाव में 75% से ज्यादा मत नहीं पड़े होंगे। मतलब 25% लोगों ने स्वेच्छा से मतदान नहीं किया और वो खुशी-खुशी इसी भारत के निवासी हैं उनमें से कोई भी पाकिस्तान नहीं गया। याद रखें कि जब तक चुनाव आयोग ने वोट देने को अनिवार्य घोषित नहीं किया तब तक आपको कोई भी वोट देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। आपकी मर्जी आप उस दिन गली में क्रिकेट भी खेल सकते हैं। मद्यपान कर दिन भर सो भी सकते हैं। हाँ! आपसे निवेदन जरूर किया जा सकता है कि आप वोट जरुर दें और ठीक वैसे ही जैसे निवेदन किया जाता है कि कृपया मद्यपान न करें।
इस पोस्ट के पाठकों से पुन: अपेक्षा है कि यहाँ आपकी राजनैतिक प्रतिबद्धता को प्रभावित करने का कोई इरादा नहीं है। आप अगर भारतीय जनता पार्टी के वोटर हैं तो मैं आपका सम्मान करता हूँ और आपको अपनी पार्टी के लिए जरूर भाजपा को वोट करना चाहिए। अगर आप समाजवादी पार्टी के वोटर हैं तो आपका भी बेहद सम्मान है और आप समाजवादी पार्टी को वोट जरुर दें। अगर आप बहुजन, आम आदमी पार्टी या भारत के किसी भी लोकतांत्रिक दल के नेता सदस्य या वोटर हैं तो आप सभी का सम्मान है और आप वहीं वोट कीजिए जहाँ आपको अच्छा लगता है। लेकिन नोटा के प्रति इस तरह अफवाह न फैलाएं न फैलने दें।और इस तरह का दुराग्रह भी न करें कि "ये " पार्टी है तो हिन्दुत्व है या "ये" पार्टी है तो ईसाईयत जिन्दा है या इस पार्टी से इस्लाम जिंदा है...। हिंदुत्व इस्लाम या कोई भी धर्म हमारे लोकतंत्र से जिंदा है और लोकतंत्र की इकाई लोक है पार्टी नहीं।
इसलिए आपसे भी अन्य दलों की भावना और उसके राजनीतिक मत भले ही वह नोटा ही क्यों न हो उसके प्रति सम्मान की अपेक्षा की जाती है। अपनी यह देशभक्ति या देशद्रोही वाली डिग्री अपने पास बचाकर रखिए किसी विश्वविद्यालय ने पाँच नंबर का वेटेज दिया तो आपसे आकर ले जाऊँगा।
जो लोग नोटा की तरफदारी करने के लिए मुझे अन्फ्रेंड या ब्लाॅक करना चाहते हैं वो बिना किसी संकोच के ऐसा कर सकते हैं। बल्कि मेरा निवेदन हर पार्टी के लोगों से है कि जो लोग भी मुझसे राजनीतिक कारणों और लेखों के कारण जुड़े हों, वो अपनी सूची से विदा कर दें क्योंकि मैं किसी भी राजनैतिक दल की तरफ से नहीं हूँ। न ही मैं किसी भी तरह के राजनीतिक लेख लिखता - पढ़ता हूँ। मेरा विषय साहित्य संस्कृति लोककला आदि है और मैंने फेसबुक केवल और केवल साहित्यिक गतिविधियों के लिए चुना है।
सभी राजनीतिक दलों के प्रति श्रद्धा और सम्मान के साथ
असित कुमार मिश्र
बलिया
No comments:
Post a Comment